…तो इसलिए प्यासी तड़प रही है दुर्ग की जनता, बढ़ानी थी पानी की क्षमता, बढ़ा दी टंकियां, कैसे पूरी हो शहर की जरूरतें,,, 20 साल पहले जितना पानी सप्लाई करते थे, आज भी उतनी ही आपूर्ति

नरेश सोनी

दुर्ग। दुर्ग शहर पानी के लिए हाहाकार कर रहा है और नगर निगम के चुने हुए जनप्रतिनिधि अपनी पीठ थपथपाते नहीं अघा रहे कि टैंकरों के सेंटर सिमट गए हैं। निगम के जिम्मेदार लोगों को आबादी के हिसाब से दूरदृष्टि का परिचय देना था, किन्तु विडंबना है कि पानी की टंकियां बढ़ाकर यह उम्मीद की जाती रही कि शहर की आबादी को समुचित पानी उपलब्ध हो पाएगा। जबकि पानी टंकियों की बजाए यदि पानी की क्षमता बढ़ाई जाती तो शहरवासियो को दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता। आज भी दशकों पुरानी व्यवस्था के तहत शहर के लोगों को जलापूर्ति की जा रही है। न पानी खींचने वाले पम्प की क्षमता बढ़ाई गई, न संख्या। जलाशयों से पानी लेने का भी कोई सिस्टम विकसित नहीं किया गया। हालात यह है कि जलापूर्ति व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है।

शहर में जलापूर्ति के लिए कुल मिलाकर ३ जलशोधन संयंत्र काम कर रहे हैं। इनमें से ११ एमएलडी और २४ एमएलडी क्षमता वाले संयंत्र तो बेहतर काम कर रहे हैं, किन्तु कुछ समय पहले बनाया गया ४२ एमएलडी क्षमता वाला संयंत्र अपनी क्षमता का आधा पानी भी नहीं दे पा रहा है। ११ एमएलडी क्षमता वाला नलघर नया बस स्टैण्ड के सामने स्थित है, जो दशकों पुराना है। बावजूद इसके वह अब भी अपनी पूरी क्षमता के साथ पानी दे रहा है। कमोबेश ऐसा ही साइंस कालेज के सामने स्थित पुराना २४ एमएलडी संयंत्र भी है। यह संयंत्र भी अपनी क्षमता का भरपूर दोहन कर रहा है। इन पुराने संयंत्रों से जब पूरी क्षमता से पानी मिल पा रहा है तो सवाल यह है कि आखिर नया बना ४२ एमएलडी क्षमता वाला संयंत्र काम क्यों नहीं कर पा रहा है? इस नए संयंत्र से महज १२ एमएलडी पानी ही मिल पा रहा है। जब किसी संयंत्र की क्षमताओं का पूरा-पूरा उपयोग नहीं होगा तो शहर में पानी की समस्या तो होगी ही। जानकारों के मुताबिक, साइंस कालेज के सामने बना ४२ एमएलडी क्षमता वाला संयंत्र पीएचई ने बनाया था और उसे नगर निगम के हवाले भी किया जा चुका है। लेकिन इस संयंत्र में अब भी नगर निगम का स्टॉफ काम नहीं कर रहा है। यहां एजेंसी के लोग अपने हिसाब से तथाकथित सेवाएं दे रहे हैं।

४ मोटरों पर १८ टंकियों की जिम्मेदारी

जलगृह विभाग के पास नदी से पानी खींचने के लिए कुल मिलाकर ६ मोटर है। इनमें से सिर्फ ४ मोटरों के जरिए ही पानी खींचा जा रहा है। नगर निगम के अफसरों की मानें तो २ मोटरों को बुरे हालातों के हिसाब से सुरक्षित रखा गया है। हालांकि निगम के ही सूत्रों का दावा है कि ये २ मोटरें खराब पड़ी हुई है। इसे सुधरवाया भी नहीं जा रहा है। हालात यह है कि दुर्ग शहर में नई-पुरानी मिलाकर कुल १८ टंकियों को भरने का जिम्मा महज ४ मोटरों पर ही है। इनमें से यदि एक भी मोटर खराब होती है तो शहर के एक बड़े हिस्से में जलापूर्ति प्रभावित होती है। नगर निगम के जिम्मेदार ओहदों पर बैठे लोग इस सच्चाई को लगातार छिपाते रहे हैं।

दरकार थी मोटर पम्प बढ़ाने की

जानकारों की मानें तो शहर की बढ़ती आबादी के हिसाब से शिवनाथ नदी में मोटर पम्प बढ़ाने की जरूरत थी। लेकिन विगत करीब १५-२० वर्षों से इस दिशा में कोई काम ही नहीं हुआ। आज भी पुरानी व्यवस्था के तहत और सीमित संसाधनों से नदी से पानी लिया जा रहा है। ऐसे में बढ़ी हुई आबादी को पानी कैसे मिलेगा? नगर निगम के महानुभावों ने इस बात पर तो गम्भीर चिंतन किया कि आबादी के हिसाब से पानी की टंकियां बढ़ा दी जाए, लेकिन इस तथ्य पर किसी ने भी विचार नहीं किया कि नदी में पानी खींचने की सीमित क्षमता के साथ आखिर इन टंकियों को भरा कैसे जाएगा? टंकियों की संख्या बढ़ाने लेने का औचित्य क्या है, जब उसमें पानी ही नहीं भर पाएंगे?

एक भी अतिरिक्त मोटर नहीं

सूत्रों के मुताबिक, वर्तमान में नगर निगम के पास एक भी अतिरिक्त मोटर पम्प उपलब्ध नहीं है। इसे दूरदर्शी सोच का अभाव ही कहेंगे, क्योंकि इस भीषण गर्मी में यदि एक या दो मोटर भी जवाब दे गई तो भरपाई करने के लिए संसाधन नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, मोटर पम्प की आपूर्ति कोलकाता की एक कम्पनी करती है। यदि मोटर पम्प खराब हो जाए तो जाहिर है कि कोलकाता से ही नई मोटर मंगवानी पड़ेगी। इसमें रूपए, श्रम और समय व्यय होगा। लोगों को तकलीफ होगी, वह अलग। हालांकि गर्मियां अब खत्म होने को हैं और मानसून के आते ही शहर से पानी की समस्या भी लगभग खत्म हो जाएगी, किन्तु नगर निगम के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगो को अभी से विचार करना होगा कि जलशोधन संयंत्रों का भरपूर उपयोग कैसे हो और खाली पड़ी टंकियों को भरने के लिए क्या जुगत लगाई जाए।

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